किसी कलाकार को सच्ची श्रद्धांजलि क्या हो सकती हैं ? श्रद्धांजलि कोई रूकी हुई चीज नही है, और न ही घटित होकर खत्म हो सकती है। किसी को याद कर समझा जाएं, अनवरत् चलते रहने के लिए उसे समझना उसे याद करना उसे फिर से जिंदा करना है।
संपन्न इतिहास की यादों को संजोए हुए खण्डवा श्री दादाजी धूनीवाले की उपस्थिती के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। सतपुड़ा विन्ध्य की गोद में बसे इस शहर की अपनी संस्कृति,सभ्यता और विचार रहे हैं। पांच कुण्डों से घिरा यह शहर नदी पर्वत मंदिरों की प्राकृतिक संपदा के बीच चमेली की तरह सुगंधित रहा हैं। रामायण काल में वनवास के समय सीता जी की प्यास बुझाने के लिए राम जी ने तीर चलाया तो रामेश्वर कुण्ड बना जो आज भी लोगों की प्यास बुझा रहा हैं.... सूर्पणखां के कारण बना सिद्ध भवानी मंदिर हैं जो पहले नकटी भवानी और फिर छोटे दादाजी के कारण तुलजा भवानी के नाम से जाना जाने लगा.., महाभारत काल का ये खाण्डव वन जहां स्वयं अग्निदेव अपनी बीमारी की औषधि ढूंढने आए थे। बाजारवाद के प्रभाव के बाद भी केवल खण्डवा शहर ही ऐसा हैं, जो गुरूपूर्णिमा पर सर्वस्व समर्पण को आतुर रहता हैं....राष्ट्रकवि दादा माखन लाल चतुर्वेदी और पंडित रामनारायण उपाध्याय ने इसे साहित्य का वरदान देकर अभिभूत किया,और इसी माटी में...
हां इसी माटी में 4 अगस्त 1929 को एक आवाज फूटी,खण्डवा के मौसम ने जिसकी परवरिश की, पक्षियों के पंखो पर सवार होकर जिसने सभी दिशाओं में अपनी गूंज भरी....अंटी, गोलकनाथ के खेल और कैरम के साथ जो आवाज किशोर होती चली गई....और उस सुर का आराधक आजीवन किशोर हो गया।
1948 में जिद्दी के एकल गीत से लेकर 1988 में वक्त की आवाज में आशा भोसलें के साथ गाएं युगल गीत तक के 40 वर्षों में किशोर दा ने 2905 फिल्मी गीत, 2661 निजी एलबम हिंदी गीत 221 बंगाली गीत गाने के साथ- साथ 102 फिल्मों में भी काम किया हैं, 14 फिल्म लिखी और प्रोड्यूस्ड भी की , 5 फिल्मों के स्क्रीन प्ले लिखें और 12 फिल्मों का निर्देशन भी किया।
खण्डवा के इस लाल की विशिष्टता यह रही कि इसने सीधे स्विस और आस्ट्रियन अल्पाइन से यॉडलिंग ली थी। पर्वतों के बीच संचार की यह भाषा इसने कब सीखी किसी को नही पता। यॉडलिंग की निरर्थकता में ही अर्थ की खोज हैं।किशोर के गायन में एक विचित्र सी एफर्टलेसनेस थी...शायद इसी के बाद ईना-मीना-डीका जैसे चार्मिंग नॉनसेंस का हौसला पैदा हुआ होगा। यॉडलिंग सुर के संसार में बूम बूम बूमपीटी, चिकाचिका चिक, यॉडलेहे यॉडलेहेऊ जैसी ध्वनियां एक तरफ यह बताती हैं कि संगीत के हरे भरे मैदान में किशोर मन भर के दौड़ लगा रहे हो.. और दुसरी तरफ यह भी कि संगीत अंततः शब्द नही ध्वनि हैं। किशोर के यॉडेल्स सुर की आजादी के पुकार हैं...यॉडेल्स ने किशोर को एक आकाश सौंपा, ये आकाश जिसमें किशोर की रिदमिकल एनर्जी कभी ‘ इक चतुर नार बड़ी होशियार ’ में अभिव्यक्त होती तो कभी ‘ मैं हुं झूम झूम झूमरू ‘ और कभी “ खई के पान बनारस वाला “ में मिलती हैं।
किशोर कुमार की एक विशेषता रही उनका कवित्व.... वह अपने लिखे गीतों को संगीत स्वर अभिनय और निर्देशन की चारों विभूतियां दे सकते थे। दूर का राही..., दूर गगन की छत में..., और दूर वादियों में कही...., इन ट्रॉइलॉजी में गीतो का यह योगी प्रयोगी हो गया और उसका एक बहुत गंभीर व्यक्तित्व सामने आया।
तखनीके कायनात के दिलचस्प जुर्म पर,
हंसता तो होगा आप पर भी यॅजदा कभी कभी...
एक बात तो जगजाहिर हैं .... जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी, इसे केवल दो लोग अच्छी तरह से समझ सकते हैं, एक वो जिनके पास श्रद्धा हैं, जो केवल प्रेम करते हैं, जो भक्त होते हैं और दुसरे वो जो मन से किशोर होते हैं.... उम्र उनकी कुछ भी हो ।मिट्टी की खुशबु और ममता की डोर से जिनका मन बंधा होता हैं। वह कहीं भी जिएगा लेकिन अपनी पार्थिव देह की भस्मी अपनी जन्मभूमि की रज में मिला देने की अंतिम इच्छा के साथ चुपचाप अनजाने लोक की यात्रा पर चल देगा.....किशोर कुमार भी ऐसे ही यथा नाम तथा गुण थे..उनका मन हमेशा से किशोर रहा।लीक के बजाय लीक से हटकर काम करने में उन्हे ज्यादा मजा आता था। शब्दों को बनाने से ज्यादा वो बिगाड़ने में विश्वास रखते थे।
विश्व सिनेमा में जब भी भारतीय सिनेमा के योगदान की बात होती हैं तो फिल्म गीत संगीत नृत्य को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता हैं।हमारी हर तरह की भावना, मानसिकता को व्यक्त करने के लिए कोई न कोई गाना जरूर होता हैं....और जब गाने या गायक की बात होती है तो किशोर दा खण्डवा वाले का नाम सबसे पहले ही आता हैं।
एक समय था जब देवानंद और किशोर दा एक अद्भुत मस्ती, शोखी औऱ युवावस्था के प्रतीक रहे। मज़रूह सुल्तानपुरी की अभिव्यक्ति और किशोर की मस्ती, शोखी या दर्द भरी मानसिकता का गहरा और एतिहासिक संबंध रहा। गुलजार और किशोर में बहुत सी सकारात्मकता खोजी जा सकती हैं।
किशोर के अनेक लोकप्रिय गीत आनंद बख्शी ने लिखे,आराधना में लिखे आनंद के गीतो ने ही किशोर को नया जीवन देकर किशोर बनाया। वो शाम कुछ अजीब थी...., कोई होता जिसको अपना ...., हवाओ पे लिख दो हवाओ के नाम... तेरे बिना जिंदगी से कोई .... जैसे गाने बताते हैं, कि जीवन दर्शन दर्द विचार आदि को खोजना है तो किशोर और गुलजार का रिश्ता महत्वपूर्ण नजर आता हैं। मस्ती मासूमियत शोखी इश्कबाजी खोजनी हैं तो मज़रूह और किशोर कि ओर देखिए। शब्दावली और कविता का फिल्मी रूप देखना हैं तो किशोर और नीरज से बढ़कर कौन होगा। लता जी और किशोर दा की आवाज जब मिलती हैं तो एक जादू और मर्म-स्पर्शी रिश्ता बन जाता हैं। चूड़ी नही ये मेरा दिल...,शोखियों में घोला जाए...,गिर गया झुमका गिरने दो...,जीवन की बगियां महकेगी.... हम दोनो दो प्रेमी...,आज मदहोश हुआ जाये रे..., तेरे बिना जिंदगी से कोई.... जैसे गाने एक नई खुशबु हमे देते हैं। आशा भोसले ऐर किशोर दा ने लगभग 569 गीत साथ मे गाएं.. छोड़ दो ऑचल जमाना क्या..., आखों में क्या जी रूपहला बादल..., पिया पिया पिया...,हाल कैसा हैं जनाब...,हवा के साथ-साथ घटा के संग-संग...,ईना मीना डीका...,छोटा साघर होगा बादल की छांव में...,लिखी हैं तेरी आंखों में...., ये जो मोहब्बत हैं..., आज उनसे पहली मुलाकात...,ओ मेरे दिल के चैन..., चला जाता हुं किसी की धुन में..., रात कली एक ख्बाव में...,फिर वही रात..., प्यार दीवाना होता हैं....,
किशोर दा की एक्टिंग उनकी निजी जिंदगी का एक्सटेंशन रही , इसे फिल्म चलती का नाम गाड़ी, छमछमा छम, हाफ टिकट, झुमरू, भागमभाग और पड़ोसन में देखा जा सकता हैं। सुहाने गीत गाने वाला ये पंछी अचानक 13 अक्टूबर 1987 को स्वर्णिम लोक की यात्रा पर बढ़ गया। उसकी रेश्मी आवाज आज भी हवा में तैर रही हैं, विश्व के कोने-कोने में जहां-जहां से उसने तान छेड़ी, वहां-वहां पहला शब्द निकला किशोर कुमार खण्डवा वाले का नमस्कार......। अपने पार्थिव शरीर को उसी बाम्बे बाजार के उसी कमरें में रखने की जिसमे जन्म के समय आंखें खोली थी और खण्डवा में भस्मीभूत होने की अटूट विश्वमयी इच्छा तखने वाला निमाड़ का ये सपूत संदेश दे गया........ अपनी माटी से जुड़ने का संदेश..... मॉ का ऋण चुकाने का संदेश...! विलासिता में भी अपने धूल से सने बचपन को याद करने का संदेश.... खण्डवा में बस जाएंगें दूध जलेबी खाएंगें...। धन्य हो उठा खण्डवा, धन्य हो उठी खण्डवा की माटी...। रेशमी आवाज का बादशाह आबना नदी के तट पर सांझ की लालिमा के साथ अपनी कला के अनंत रंगों को लेकर विराट होता चला गया। और वो पंछी सुहाने गीत गाता अनंत की यात्रा पर उड़ गया......।